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बस्सी में प्रशासन ने की वार्डो की सीमा निर्धारित, 5 अगस्त तक मांगी आपत्तियां
Posted: जुलाई 24, 2021 in अवर्गीकृतटैग्स: nagarpalika, political, rajasthan
राजस्थान भाजपा का एतिहासिक दस्तावेज़ है तिवाड़ी का जवाबी पत्र
Posted: जून 27, 2017 in राजनीतिक, संस्मरणटैग्स: Bhartiya Janta Party, BJP, ghanshyam tiwadi, Notice, Notice to Ghanshyam Tiwadi, political, rajasthan, Rajasthan BJP, Vasundhara Raje
भाजपा की केंद्रीय अनुशासन कमेटी के सदस्य प्रो. गणेशीलाल ने मई 2017 में जयपुर, सांगानेर से भाजपा विधायक घनश्याम तिवाड़ी को नोटिस जारी किया है। उन्होंने तिवाड़ी पर अनुशासन हीनता का आरोप लगाते हुए कुल जमा चार आरोप लगाए थे।
1 दो वर्षों से लगातार पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त रहना एवं पार्टी के विरुद्ध बयानबाज़ी करना
2 पार्टी की बैठकों में उपस्थित ना होना
3 विपक्षी दलों के साथ मंच साझा करना
4 समानांतर राजनैतिक दल खड़ा करने का प्रयास करना
दरअसल ये नोटिस तिवाड़ी और मुख्यमंत्री वसुंधरा के बीच चल रहे द्वन्द का चरम था। प्रदेशाध्यक्ष अशोक परनामी द्वारा दिए गए फ़ीडबैक के आधार पर तिवाड़ी को ये नोटिस जारी किया गया था। मगर इस नोटिस के जवाब में घनश्याम तिवाड़ी ने अपना जो जवाब भेजा, वो एक एतिहासिक धरोहर बन गए है। असल में तिवाड़ी उन नेताओ या यूँ कहे संस्थापको में से एक है जिन्होंने राजस्थान में भाजपा को अपने ख़ून-पसीने से सींचा है। ऐसे में जब उन्हें ही पार्टी ने नोटिस दे दिया तो उनकी पीड़ा सहज ही समझी जा सकती है
तिवाड़ी ने पुरानी यादों और अपने संस्करो और संघर्ष के बरबक्स सहज ही भाजपा की मौजूदा स्थिति को बयान कर दिया है। तिवाड़ी ने अपना जवाब दो अलग अलग पत्रों के माध्यम से भेजा, ये दोनो ही पत्र राजनीति में रुचि लेने वालों हर इंसान को पढ़े जाने चाहिए (विशेषकर दूसरा जवाब)
यहाँ हम आप लोगों को तिवाड़ी द्वारा दिया गया दूसरा जवाब पढ़वा रहे है…
कहां तक जाएंगी प्रधानमंत्री की सनक
Posted: जून 19, 2017 in भड़ास, राजनीतिक, सामयिकटैग्स: bekaboo bheed, jafar husain, narendra modi, political, pratapgarh, rajasthan, swachch bharat abhiyan
हमारे प्रधानमंत्री अपने विचारों को लेकर सनकी है, उन्हे लगता है कि जो विचार उन्हे सूझा है वो ना केवल अनोखा है, बल्कि उसे लागू कर देने में ही देश का हित है। फिर भले सारा देश उस निर्णय के खिलाफ हो, भले उस निर्णय के कुछ नतीजे निकले, मोदीजी को उससे कोई लेना देना नहीं होता। उनके सभी निर्णय उनकी सनक को ही दिखाते है, फिर भले वो नोटबन्दी हो, जीएसटी हो या फिर स्वच्छ भारत
माना कि खुले में शौच करना भद्दा लगता है, गंदगी को भी बढाता है। मगर ये क्या कि आप इसे बन्द करने में पागल हो गए। इस
कदर कि सुबह सवेरे सरकारी कर्मचारीयों को इसी काम पर लगा दिया कि वे जायें और खुले में शौच करने वालों के फोटो ले और ढोल बजाकर उन्हे वहां से भगाएं। मोदीजी की एक सनक ने क्या अध्यापक, क्या ग्राम सेवक सबको इस एक महान कार्य पर लगा दिया।
यहां तक भी ठीक था, मगर इस सनक की परिणति हाल ही में राजस्थान के प्रतापगढ में एक श्रमिक नेता जफर हुसैन की मौत से हुई। इस आदमी का कसूर केवल इतना भर था कि इसके नगरपालिका के कर्मचारियों को अपनी पत्नी की फोटो लेने से रोका था। जफर का इन्कार करना कार्मिकों और वहां मौजूद भीड को इतना नागवार गुजरा कि उन्होने पीट पीट कर उसे मार डाला।
क्या खुले में शौच करना इतना बडा गुनाह है, क्या अपनी पत्नी की भद्दी फोटो लेने से रोकना इतना बडा गुनाह है,
दरअसल स्वच्छ भारत अभियान लोगो को खुले में शौच से रोकने के लिए प्रेरित करने का अभियान है। इस अभियान के तहत लाभार्भियों] सरकारी संस्थाओं को प्रोत्साहन राशि दी जाती है ताकि उनके प्रेरित होकर ज्यादा से ज्यादा लोग खुले में शौच की आदत से दूर हो।
मगर प्रधानमंत्री मोदी की सनक ने इस प्रेरणा अभियान को बाध्यकारी बना दिया है, गाहे बेगाहे कभी स्वच्छता कार्ड ना होने पर राशन देने से इन्कार की खबरे आती है तो कभी ओडीएफ ना होने पर पंचायतों की विकास राशि रोक दी जाती है। लक्ष्य पूरे ना होने पर कर्मचारीयों को नोटिस तो आए दिन मिलते ही रहते है, ऐसे में अब ये हत्या– मोदी जी की ये सनक आखिर कहां जाकर रूकेगी।
क्या युनुस खान के रस्ते वसुंधरा तक पहुंचेगी आंच?
Posted: जून 14, 2017 in राजनीतिकटैग्स: Deedwana, ghanshyam tiwadi, hanuman beniwal, rajasthan, vasundhara raaje, yunus khan
देशभक्तों की पार्टी ने ताज़ा कारनामा किया राजस्थान में.. डीडवाना; नागौर में 2 जून को कुछ लोगो ने पुलिस की मौजूदगी में पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाएए अब जिस शख्स पर ये इलज़ाम है वो भाजपा के पदाधिकारी है, और उस व्यक्ति के जरिये आंच जा पहुंची है वसुंधरा के मंत्री युनुस खान तक..
वाकया कुछ इस तरह है कि बिजनौर में अल्पसंख्यक महिला के साथ हुए दुष्कर्म के बाद डीडवाना में मुस्लिम समाज के लोगों ने एक जुलूस निकाला और प्रशासन को ज्ञापन दिया। लौटते समय जुलूस में शामिल कुछ लोगो ने पुलिस चौकी के सामने पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगाए। पुलिस की मौजूदगी में ऐसा होने के बावजूद कथित रूप से मंत्री यूनुस खान के दबाव में कोई कार्यवाही नहीं की। बाद में जब वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और लोगो को दबाव पडने लगा तब जाकर पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया, मगर सिर्फ धार्मिक उन्माद फैलाने का.. देशद्रोह का नहीं
वैसे युनुस खान का नाम जनवरी में पकडे गए पाक जासूस के साथ भी आ चुका है, मगर उस प्रकरण में भी
महाशय का बाल बांका नही हुआए और अब 2 जून से ये मामला तूल पकड़ने के बावजूद महारानी वसुंधरा ने अभी तक मंत्री को पद से नहीं हटाया है..
और दबे कानो चर्चा है की मंत्री युनुस खान के दबाव में पुलिस ने पहले तो मामला दर्ज ही नहीं किया, और
बाद में जब विडियो सोशल मीडिया में वायरल हो गयी तो मामला दर्ज भी किया गया तो “धार्मिक उन्माद” फैलाने का..
युनूस खान का विवादों के ये कोई नया नाता नहीं है, उनका नाम राज्य के लगभग हर बडे काण्ड से जुड ही जाता है। राज्य के सबसे चर्चित और कुख्यात गैंगस्टर आनन्दपाल से उनके संबंधों की चर्चा हर किसी की जबान पर है। पाक जासूसों के साथ भी उनका नाम जोडा जाता रहा है। उसके बाद अब ये मसला।
अब इस सारे मामले में भाजपा के ही विधायक घनश्याम तिवाड़ी और निर्दलीय विधायक हनुमान बेनीवाल युनुस खान के खिलाफ ताल ठोक चुके है..
देखते है की देशभक्तों की सरकार अपने ही मंत्री के खिलाफ कितना कड़ा कदम उठाती है..
नई जमींदारी प्रथा का उदय
Posted: जून 12, 2017 in अवर्गीकृतटैग्स: political, rajasthan, rajasthan special investment region act, SIR
“राजस्थान विशेष विनिधान विधेयक” (Rajasthan Special Investment Region Act)
राजस्थान में पास भूमि अधिग्रहण बिल अपने आप में बहुत खतरनाक दस्तावेज है. इसका हर स्तर पर विरोध होना चाहिए और जनहित में सरकार को इसे वापस लेन चाहिए.
इस बिल में अधिग्रहण, अवाप्ति, चिन्हित करना अस्पष्ट है
इस बिल में यह स्पष्ट नहीं है की किसान की अथवा अन्य ज़मीन किस प्रकार ली जाएगी।
यह तो साफ़ लिखा है कि क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण का गठन होने पर चिन्हित भूमि तुरंत क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण में निहित हो जाएगी और उसके अधिकार और नियंत्रण में आ जाएगी।
पृष्ठ संख्या 29 पर, अध्याय 6, धारा 27 में लिखा है की —
“विशेष विनिधान रीजन (special investment region) में स्थित भूमि धारा 9 के अधीन क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण का गठन होने पर तुरंत राज्य सरकार के निमित्त क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण में निहित और उसके व्ययनाधीन — उसके disposal, क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण के अधिकार, नियंत्रण — में रखी समझी जायेगी…”
निजी खातेदारों की भूमि ही नहीं स्थानीय प्राधिकरण यानी की पंचायती राज संस्था, या नगर पालिका, या आवासन बोर्ड, या नगर सुधार न्यास या कोई अन्य विकास प्राधिकरण की ज़मीनें भी इन SIR के क्षेत्रीय विकास प्राधिकरणों नियंत्रण अथवा अधिकार में दी जा सकेगी।
पृष्ठ संख्या 30 पर धारा 27 की उपधारा 2 में इस बाबत लिखा है कि “अगर राज्य सरकार को लगेगा की कोई भूमि जो की स्थानीय प्राधिकरण में निहित है वह क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण द्वारा अपेक्षित है तो वह किसी राजस्थान विधि में किसी बात के अंतर्विष्ट होते हुए भी, अधिसूचना द्वारा क्षेत्रीय विकास प्राधिकरणों के व्ययनाधीन रख सकेगी।”
ये SIR स्थानीय प्राधिकरण की अधिकारिता से भी बाहर होंगे। पृष्ठ संख्या 10 पर धारा 6 में वर्णित है की “विशेष विनिधान रीजन (special investment region) स्थानीय प्राधिकरण की अधिकारिता के बाहर होंगे।”
तो किसानों, व्यापारियों, कर्मचारियों की जो भूमि–भवन है और स्थानीय निकायों की भी जो ज़मीनें हैं वे सब एक नोटिफ़िकेशन द्वारा इन SIR के नियंत्रण में ली जा सकेंगी।
पृष्ठ संख्या 31 पर धारा 27 की उपधारा 4 में लिखा है कि “राज्य सरकार, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए, भूमि के अधिग्रहण — acquisition — के लिए, अधिग्रहण के समय जो भूमि अधिग्रहण का क़ानून होगा उसके आधार पर भूमि अधिग्रहित करेगी।”
आगे धारा 28 में लिखा है कि “क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण निजी पक्षकारों से, यानी Private Party से, ज़मीन ख़रीद कर ले सकता है, पट्टे पर — lease पर ले सकता है, विनियम यानी अदला–बदली — exchange — के आधार पर ले सकता है, समझौता यानी agreement करके या फिर अन्यथा ले सकता है — यानी बिना agreement या बिना समझौते के भी ले सकता है, और ज़मीन का पूल बना कर भी ले सकता है।”
ज़मीन का पूल बनाने का अर्थ है कि कोई ज़मीन है, उसका कोई मालिक है या खातेदार है या “अभिधारी” अर्थात किरायेदार है, वह अपनी ज़मीन का मालिकाना हक़ SIR के लिए जो Regional Development Aauthority “क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण” बनेगा उसको समर्पित कर आपसी सहमति से बदले में Regional Development Aauthority से जब SIR में विकास किया जाएगा तब विकसित ज़मीन का हिस्सा ले ले अथवा नक़द मुआवज़ा ले ले।
कई प्रकार से ये लाखों बीघा ज़मीन ये क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण उनके मालिकों से ले सकते हैं। ये सारी स्वतंत्रता और क़ानूनी अधिकार ये विधेयक “क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण” को देता है।
अधिग्रहण के बारे में स्पष्ट नहीं है
इस बिल में इस बात का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं है की भूमि का अधिग्रहण —
- ब्रिटिश राज के समय के 1894 के भूमि अधिग्रहण क़ानून के आधार पर होगा, कि
- UPA की सरकार के “The Right to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement Act, 2013, के आधार पर होगा, अथवा
- वर्तमान NDA सरकार के Land Acquisition Amendment Bill जिसको Land Bill 2015 भी कहा जाता है, उसके आधार पर होगा, या कि
– इस सम्बंध में राज्य सरकार का कोई क़ानून है जिसके आधार पर भूमि का अधिग्रहण होगा?
यह भी स्पष्ट नहीं है की किसान से या भूमि के मालिक से जब उसकी ज़मीन अधिग्रहीत की जाएगी तो उसको कितना मुआवज़ा मिलेगा?
अधिग्रहण के प्रश्न के साथ यह प्रश्न बिना किसी अपवाद के जुड़ा है कि किसान से अगर उसकी ज़मीन अधिग्रहीत की जाएगी तो उसको कितना मुआवज़ा मिलेगा?
इसके साथ यह तीसरा प्रश्न जुड़ा है की जो मुआवज़ा मिलेगा वह कितने दिनों में मिलेगा?
बिल में ये तीनों बातें स्पष्ट नहीं हो रही —
भूमि अधिग्रहण का कौनसा क़ानून लागू होगा? भविष्य में कोई नया क़ानून आए वो अलग बात है। अगर आज राज्य सरकार “क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण” के माध्यम से राजस्थान के किसानों की ज़मीन अधिग्रहीत करती है तो भूमि अधिग्रहण का कौन सा क़ानून आज राज्य में लागू है जिसके आधार पर ज़मीन का अधिग्रहण होगा? और किस आधार पर मुआवज़ा मिलेगा? कब तक मिलेगा?
चिंता का विषय यह है की सरकार एक तरफ़ कह रही है की उसका ख़ज़ाना ख़ाली है दूसरी तरफ़ लाखों बीघा ज़मीन को चिन्हित करने और अधिग्रहण की तैयारी हो रही है! ऐसी स्थिति में आप किसानों की जो हज़ारों-लाखों बीघा ज़मीन अधिग्रहण करेंगे उसका मुआवज़ा कहाँ से देंगे? कब देंगे?
बिल में यह भी स्पष्ट नहीं है की लैंड पूल होगा तो कितने प्रतिशत विकसित भूमि किस–किस लैंड यूज की किसान को या ज़मीन के मालिक को वापिस दी जाएगी? कौन से ज़ोन में दी जाएगी? किसान से ज़मीन लेकर कितने दिनों में उसे विकसित ज़मीन का उसका हिस्सा वापिस मिलेगा?
वैसे तो ये जो ज़ोन का प्रावधान है वह ख़तरनाक है।
किसी जोन में ज़मीन आ गयी तो किसान का तो गला ही घोंट दिया ऐसी स्थिति हो जाएगी
सरकार और कोर्प्रोरेट मिलकर तय कर देंगे की इस-इस जगह ये ज़ोन बनेगा — यहाँ औद्योगिक ज़ोन बनेगा, यहाँ मनोरंजन पार्क बनेगा इत्यादि। अब उस ज़ोन में आने वाले किसान की ज़मीन तो उसी ज़ोन का काम करने वाली कम्पनी को बेची जा सकेगी! आज एक किसान अपनी ज़मीन बेचने का निर्णय करता है तो वह किसी को भी बेच सकता है। उसको स्वतंत्रता है। लेकिन एक बार आपने अपने “विकास प्राधिकरण” के माध्यम से कम्पनी के लोगों के साथ बैठ कर जो प्लान बनाएँगे उसमें तय कर दिया की ये ज़मीन केवल मनोरंजन पार्क के लिए काम में ली जा सकेगी तो किसान की विवाशता हो गयी कि वह उस ज़मीन को किसी और उपयोग के लिए नहीं बेच सकता। आपने उसे बाँध दिया। अव्वल तो इतने लोग मिलेंगे नहीं की उस रीजन में उस काम के लिए उस पर्टिक्युलर किसान की ज़मीन ख़रीदने के लिए भीड़ लग गयी। केवल कुछ एक लोग इंट्रेस्टेड होंगे। अब अगर दो-चार व्यापारी जो इंट्रेस्ट ले रहे हैं उन्होंने कार्टैल बना लिया की हम तो बस इतना ही पैसा देंगे तो किसान क्या करेगा? इधर तो सरकार है — जिसने कोर्प्रोरेट के साथ बैठ कर ज़ोन बना दी जिसके बाहर किसान नहीं जा सकेगा। उधर वो कम्पनी वाले हैं जिन्होंने कार्टैल बना लिया।
एक तरह से इस बिल के माध्यम से इस प्रकार की स्थिति निर्मित हो जाएगी कि किसान सरकार और कारपोरेट के बीच फूटबाल बन जाएगा। वस्तुतः किसान को मजबूर किया जाएगा की वह अपनी ज़मीन ख़ून के घूँट पी कर बेचे और रवाना हो जाए। SIR की नोटिफ़िकेशन द्वारा घोषणा होगी और किसी भी प्रकार की भूमि को चिन्हित किया जा सकेगा
बिल के पृष्ठ संख्या 8 पर धारा 3 में लिखा है कि “राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा, भूमि के किसी भी क्षेत्र को, स्पेशल इन्वेस्टमेंट रीजन के रूप में घोषित कर सकेगी।” इसमें औद्योगिक क्षेत्र — जैसे की दिल्ली के नज़दीक के भिवाड़ी, नीमराणा इत्यादि औद्योगिक क्षेत्र, या राजस्थान के प्रमुख शहरों के नज़दीक के औद्योगिक क्षेत्र — भी लिए जा सकेंगे।
इसमें राज्य के गाँवों–क़स्बों के गोचर की ज़मीन, चारागाह की ज़मीनें, किसान की खातेदारी की ज़मीन, किसी छोटे दुकानदार की ज़मीन, किसी का कोई प्लाट लिया हुआ है किसी निजी आवासीय योजना में तो वो भी — “भूमि के किसी भी क्षेत्र को” लिया जा सकेगा।
सरकार एक नोटिफ़िकेशन निकाल कर ये घोषित कर देगी की
— ये जो 50 हज़ार बीघा ज़मीन है अलवर के पास, या
— ये जो 70 हज़ार बीघा ज़मीन है उदयपुर के पास, अथवा
— ये जो एक लाख बीघा ज़मीन है जयपुर-अजमेर या जयपुर-दिल्ली हाइवे के दोनों ओर, या
— राज्य में से गुज़ारने वाले दिल्ली-मुंबई औद्योगिक कॉरिडोर के दोनों तरफ़ की लाखों बीघा जमीन
— ये स्पेशल इन्वेस्टमेंट रीजन बनेगा।
SIR के लिए क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण का गठन
ये जो स्पेशल इन्वेस्टमेंट रीजन बनेगा इसका राज्य स्तर पर एक “बोर्ड” होगा और अपने-अपने क्षेत्रों में “क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण” होंगे।
विधेयक के पृष्ठ संख्या 12 पर वर्णित है की “क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण” के गठन के बारे में धारा 9 लागों होगी । इसमें लिखा है कि राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा, Special Investment Regions के लिए “क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण” गठित करेगी। जहाँ एक से अधिक Special Investment Regions होंगे वहाँ उनके लिए “एकल क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण” का गठन होगा।
पृष्ठ संख्या 13 पर धारा 9 के उप–धारा 2 में उल्लेख है की ये जो “क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण” होंगे इनमें अध्यक्ष रहेगा राज्य सरकार का दिल्ली-मुंबई औद्योगिक कारिडोर विभाग का मंत्री। तथा इसके सदस्य होंगे Special Investment Region में शामिल किए गए क्षेत्रों के लोक सभा और विधान सभा के सदस्य।
यहाँ दो बातें माननीय सदस्यों के समझने की है —
पहली यह की यहाँ यह और अधिक स्पष्ट हो जाता है की एक स्पेशल इन्वेस्टमेंट रीजन इतना बड़ा हो सकता है कि उसमें कई विधानसभा क्षेत्र और लोकसभा क्षेत्र आ जाएँ। इसीलिए विधेयक में लिखा है “विशेष विनिधान रीजन में सम्मिलित समस्त लोकसभा और राजस्थान विधानसभा के सदस्य।”— इससे आप ये अंदाज़ा लगा सकते हैं की ये रीजन हज़ारों बीघा क्षेत्र को अपने में शामिल करेंगे। दूसरी बात ये समझने की है कि विधायकों और सांसदों को अनेकों इस प्रकार के प्राधिकरणों में सदस्य बनाया जाता है और वे नाम के सदस्य होते हैं उनका कोई महत्व नहीं होता। लेकिन ये जो प्राधिकरण बनेंगे जिसमें ये विधायक और सांसद सदस्य होंगे इसका महत्व होगा। और बड़ा गम्भीर महत्व होगा। कैसे? इसे समझें।
इस बात को समझने के लिए हमको पृष्ठ संख्या 14 पर सेक्शन 10 “क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण की शक्तियाँ और कृत्य” देखना पड़ेगा जिसमें लिखा है कि “क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण निम्नलिखित कृत्यों का निर्वहन करेगा और निम्नलिखित शक्तियों का प्रयोग करेगा।”
इसको पढ़ते हुए जब हम पृष्ठ संख्या 15 पर धारा 10 के (ज) तक पहुँचेंगे तो उसमें लिखा है कि “धारा 49 के उपबंधों (यानी provisions, प्रावधानों) — के अध्यधीन (यानी अधीन रहते हुए) सर्वेक्षण करने, जाँच, निरीक्षण, परीक्षण करने या माप लेने के लिए किसी भूमि पर या भवन में प्रवेश करना;” तो जिसके आप लोग विधायक और सांसद सदस्य होंगे वह क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण “धारा 49 के प्रावधानों के अधीन रहते हुए सर्वेक्षण करने, जाँच, निरीक्षण, परीक्षण करने या माप लेने के लिए किसी भूमि पर या भवन में प्रवेश करने की शक्ति रखेगा।”
धारा 49 के प्रावधानों के अधीन रहते हुए
अब देखें की धारा 49 के प्रावधान क्या हैं?
ये देखें पृष्ठ संख्या 41 पर।
धारा 49 है “प्रवेश की शक्ति” और इसके प्रावधान हैं —
इसकी उपधारा 1 में लिखा है “क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण किसी भी व्यक्ति को authorise कर सकता है,” अंग्रेज़ी में लिखा है पृष्ठ संख्या 114 पर — “The Regional Development Authority may authorise any person”
“क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण किसी भी व्यक्ति को, उसके सहायकों या कर्मकारों सहित — यानी किसी भी व्यक्ति को उसके साथ कारीगरों, मज़दूरों, कामगारों सहित — या उनके बिना, यानी अकेले भी, किसी भी भूमि या भवन में या उसके ऊपर निम्नलिखित प्रयोजनों के लिए प्रवेश कराने के लिए प्राधिकृत authorise कर सकेगा — इसका अर्थ है की जिसकी भी प्रॉपर्टी चाहे वो खेत हो, छोटी-बड़ी दुकान हो, मकान हो, फ़्लैट हो, होटल हो, ढाबा हो, मंदिर हो, स्कूल हो, सिनेमा हो — जो भी ज़मीन SIR में चिन्हित हो गयी और उसका नोटिफ़िकेशन निकल गया — क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण को ये बिल ये शक्ति प्रदान करेगा की वह किसी भी व्यक्ति को उस खेत के, दुकान के, मकान के, फ़्लैट के अंदर, उस व्यक्ति के साथ के मज़दूरों सहित या उनके बिना अकेले जाने के लिए authorise कर सकेगा।
किन-किन कामों के लिए ये आगे लिखा है। इस उपधारा के सेक्शन (च) में लिखा है “कोई जाँच, निरीक्षण या तलाशी के लिए,” और सेक्शन (छ) में लिखा है “कोई भी अन्य कार्य के लिए जो इस अधिनियम के दक्षतापूर्ण प्रशासन (efficient administration) के लिए आवश्यक हो”
इसका अर्थ क्या है?
इसका अर्थ है की क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण किसी भी व्यक्ति को किसान के खेत में, व्यापारी की दुकान में, किसी के भी मकान में, फ़्लैट में, उस व्यक्ति के साथ के मज़दूरों सहित या उनके बिना अकेले जाने के लिए authorise कर सकेगा!
बिना वारंट के पुलिस भी किसी के घर में तलाशी के लिए नहीं घुस सकती! ये अधिनियम कैसे किसी भी विकास प्राधिकरण के व्यक्ति को — सरकार के कर्मचारी को भी नहीं — किसी भी व्यक्ति को — यह अनुमति दे सकता है की वह उस योजना में आए किसी भी खेत में, मकान में, फ़्लैट में जाँच, निरीक्षण या तलाशी के लिए चला जाएगा?
राज्य की लाखों जनता के घरों में, दुकानों में आप ज़मीन हथियाने वाले गुंडों और माफ़िया के जाने का रास्ता बना रहे हो?! और ये काम किसके माथे पड़ेगा? क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण के सदस्य विधायक और सांसदों के। क्यों — क्योंकि आप इसके सदस्य होंगे। सदस्य होने का वैसे तो कोई महत्व ही नहीं है इस प्रकार के प्राधिकरणों में लेकिन विकास प्राधिकरण में कोई भी दूर बैठा नेता या अफ़सर निर्णय ले इस प्रकार के काम का सारा दोष पड़ेगा आप पर।
और आप लोग आज इस बिल को विधासभा में पास करोगे?!
मैं पूछना चाहता हूँ यहाँ उपस्थित सभी विधायकों से — आप अपने ख़ुद के घर में कोई भी कभी भी तलाशी के लिए, निरीक्षण के लिए घुस जाए इसका बिल पास करेंगे? अगर आप अपने घर की तलाशी के लिए नहीं करेंगे तो राज्य की जनता के घरों की तलाशी के लिए क्यों करेंगे! इसलिए की उन्होंने भरोसे में आकर आपको चुन कर भेज दिया?
आगे इस बिल में पृष्ठ संख्या 42 पर क्या लिखा है ज़रा यह भी देख लें —
“परंतु सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच के समय के सिवाय — अधिभोगी (यानी वहाँ रहने वाला — किरायेदार, निवासी, इत्यादि) को, और अगर निवासी नहीं हो तो भूमि अथवा भवन के स्वामी को कम से कम चौबीस घंटे का युक्तिसंगत नोटिस दिए बिना ऐसा प्रवेश नहीं किया जाएगा,”
इसका अर्थ हुआ की अगर सुबह 5-5:30 बजे सूर्योदय होता है तो 5 बजे ये लोग घरों में जा सकते हैं, और शाम 7:30-8 बजे सूर्यास्त होता है तो तब तक जा सकते हैं या उस भूमि अथवा भवन में रह सकते हैं!
आगे लिखा है कि —
“प्रत्येक बार सूचना दी जाएगी ताकि किसी अपार्टमेंट की अंत:वासी महिलाओं के लिए रखे गए किसी भाग से महिलाएँ किसी ऐसे भाग में जा सकें जहाँ उनकी व्यक्तिक एकांतता में विघ्न ना हो!”
इसमें लिखा है — “प्रत्येक बार!” — “कोई जाँच, निरीक्षण या तलाशी के लिए, — पचास छोटे-बड़े कामों के लिए जो इसमें लिखे हैं — नाप करना, निशान लगाना, सफ़ाई करना — कोई कुछ भी बहाना बना ले — क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण किसी भी व्यक्ति को, उसके सहायकों या कर्मकारों सहित — यानी किसी भी व्यक्ति को उसके साथ कारीगरों, मज़दूरों, कामगारों सहित — या उनके बिना, यानी अकेले भी, किसी भी भूमि या भवन के अंदर या उसके ऊपर प्रवेश कराने के लिए प्राधिकृत authorise कर सकेगा! सूर्यास्त और सूर्योदय के बीच कभी भी! और एक बार नहीं बार-बार कर सकेगा!”
पृष्ठ 42 पर ही आगे लिखा है “प्राधिकृत किसी व्यक्ति के लिए नीरीक्षण या तलाशी के प्रयोजन के लिए किसी दरवाज़े, फाटक या अन्य अवरोध को खोलने या खुलवाने के लिए प्रवेश करना विधिपूर्ण होगा”
“और यदि निवासी अनुपस्थित है या उपस्थित होने पर वह ऐसे दरवाज़े, फाटक या अन्य अवरोध को खोलने से इंकार करता है”
इसका अर्थ है की क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण द्वारा प्राधिकृत व्यक्ति अपने मज़दूरों के साथ नीरीक्षण या तलाशी के लिए किसी दरवाज़े, फाटक या अन्य अवरोध को तोड़कर भी जा सकते हैं चाहे वहाँ का निवासी उपस्थित हो या ना हो।
और अगर इस ज़ोर–ज़बरदस्ती, धक्का–मुक्की, में भूमि या भवन के निवासी को कोई नुक़सान होता है तो उसकी भरपाई ये प्राधिकृत व्यक्ति उसी समय करेगा। और अगर निवासी को या मालिक को लगता है कि रक़म कम है तो वह अपील प्राधिकरण को करेगा जिसका निर्णय अंतिम होगा!
कारावास का प्रावधान
इसी पृष्ठ संख्या 43 पर धारा 50 में लिखा है कि जो प्रवेश में बाधा पहुँचायेगा तो उसे 6 महीने का कारावास अथवा एक हज़ार रुपया जुर्माना अथवा दोनों से दंडित किया जा सकता है।
आगे लिखा है पृष्ठ संख्या 117 पर अंग्रेज़ी में सेक्शन 54 में
“No court shall take cognisance of any offence punishable under this Act, except
- the offence under section 45, or any rule or regulation made thereunder,
- or except upon a complaint in writing of the facts constituting such offence made by a Regional Development Authority,
- or by a person expressly authorised in this behalf by the Regional Development Authority
इसका अर्थ है कि हम न्यायालयों को भी पाबंद कर रहे हैं कि वे भी “कोई भी न्यायालय — हाई कोर्ट भी नहीं, सुप्रीम कोर्ट भी नहीं! इस धारा में वर्णित के सिवा इस अधिनियम के अधीन दंडनीय किसी अप्राद का संज्ञान नहीं करेगा!”
इसी प्रकार पृष्ठ संख्या 60 पर धारा 77 में लिखा है कि “इस अधिनियम में यथा अन्यथा उपबंधित के सिवाय — यानी इस अधिनियम में जो प्रावधान किए गए हैं उन्हें छोड़कर — इस अधिनियम के प्रावधान राजस्थान के किसी अन्य क़ानून में अगर कोई बात इस अधिनियम से असंगत है तो भी, इस अधिनियम के प्रावधान ही प्रभावी होंगे।” ये अधिनियम राजस्थान के अन्य सभी सब क़ानूनों के ऊपर होगा।
आगे पृष्ठ संख्या 61 पर धारा 81 में लिखा है कि “कोई भी सिविल न्यायालय, ऐसे किसी मामले का संज्ञान नहीं करेगा जो राज्य सरकार, SIR का बोर्ड, क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण, या अपील प्राधिकरण द्वारा इस अधिनियम के उपबंधों — प्रावधानों के अधीन विनिश्चित किया जाना अपेक्षित हो या किया जा सके”
इस बिल के माध्यम से एक नयी ज़मींदारी प्रथा का उदय होगा।
राज्य की लाखों बीघा ज़मीन इन नए ज़मींदारों के हाथों में सरकार दे देगी। आज जो ज़मीन का मालिक है — जिसे ज़मींदारी प्रथा के उन्मूलन के बाद ज़मीन मिली थी वह फिर से केवल मज़दूर बन कर रह जाएगा।
जनसंघ के समय से हमने ज़मींदारी प्रथा का विरोध किया। राजस्थान में भैरों सिंह शेखावत के नेतृत्व में ज़मींदारी उन्मूलन हुआ और किसान अपनी ज़मीन का मालिक बना। अब वापिस किसान से ज़मीन छीनने का काम हो रहा है। ज़मींदार के आदमी दिन में की रात में किसी भी घर में घुस सकते थे। किसी को भी कभी भी पकड़ के जेल में डाल सकते थे। वही काम ये बिल करेगा।
अगर ये बिल ऐसा ही पास हो गया तो होगा क्या?
राजस्थान के लोगों की लाखों बीघा खेती की ज़मीन, हज़ारों बीघा गोचर की ज़मीन, सैंकड़ों गाँवों की ज़मीन को सरकार SIR के रूप में चिन्हित करेगी। कुछ नेता और कुछ कोरपोरेट घराने मिलीभगत करेंगे, तथाकथित विकास के नाम पर ज़मीनों का अधिग्रहण होगा, वे ज़मीनें पूँजीपतियों की जेब में चली जाएँगी। कमज़ोर किसान बेचारा बेघर होकर दो टके की मज़दूरी करने किसी आस-पास के शहर में चला जाएगा। थोड़ा जो मज़बूत किसान है वह धरने-प्रदर्शन चालू करेगा। गाँव-गाँव में इसके ख़िलाफ़ आंदोलन होगा। सारे राजस्थान में लूट मचेगी और सारे राजस्थान में आग लगेगी।
ये बिल सारे राजस्थान के गाँवों, क़स्बों — किसानों और सामान्य परिवारों के जीवन को तहस-नहस कर देगा। बीसों सालों तक ये किसान ना इधर के रहेंगे ना उधर के। परिवारों में झगड़ा, सरकार के साथ क़ानूनी झंझट,… मैं आज कह रहा हूँ इस एक बिल के कारण पूरा राजस्थान अशांत हो जाएगा और जो थोड़ा बहुत विकास आदमी ख़ुद की मेहनत से कर रहा है वह भी ठप्प हो जाएगा। ये बिल राजस्थान को लूटने, अशांत करने, मुक़द्दमों में फँसाने का बिल साबित होगा। राजस्थान के गाँव-गाँव में आंदोलन खड़े होंगे।
ये एक बिल राजस्थान में पार्टी को साफ़ कर देगा।
पिछले 40-45 साल की तपस्या से खड़े किये संगठन और विचारधारा को साफ़ कर देगा। अगले 15 साल तक पार्टी राजस्थान में खड़ी नहीं हो पाएगी।
मुक्त बाज़ार का प्रश्न
ये सरकार नव-उदारवाद की मुक्त बाज़ार की नीतियों से प्रभावित है।
अगर मुक्त–बाज़ार की अर्थव्यवस्था ही सरकार लाना चाहती है, अगर सब चीज़ों का निजीकरण ही करना चाहती है तो फिर सरकार को छोड़ देना चाहिए किसान और कॉर्परेशन को मुक्त रूप से मोल–भाव करने के लिए। जो अपनी ज़मीन बेचना चाहे वह अपनी आवश्यकता और अपनी मर्ज़ी से बेचे। जो ख़रीदना चाहे वो अपनी आवश्यकता और अपनी मर्ज़ी से ख़रीदे। बेचने वाला और ख़रीदने वाला दोनों स्वतंत्र हैं। सरकार बीच में दलाली क्यों करना चाहती है? सरकार ज़मीन अधिग्रहण के नाम पर किसान को डरा धमका कर सस्ती दर पर ज़मीन लेकर निजी कम्पनियों को क्यों देना चाहती है?
आजकल अकसर सुनने में आता है, विशेषरूप से सोशल मीडिया पर, की मीडिया की भूमिका निष्पक्ष नहीं रही। उनका कहना बिलकुल सही है, दरअसल ये दौर हर वर्ग में बदलाव का है तो मीडिया इससे कैसे अछूता रह सकता है। जिस तरह से ये दौर समाज के हर वर्ग के बदलने का है उसी तरह ये दौर मीडिया के स्वरूप के बदलने का भी है।
अव्वल तो ये कि पता नहीं लोगो ने इसे लोकतंत्र के चौथे खंबे की उपाधि दी है या इससे खुद ही अपने लिए ये ओहदा गढ लिया है। मगर जो भी हो आज के दौर में मीडिया लोकतंत्र का कोई खंबा तो दूर उसकी पैरोकार भी नहीं है। अपने बदले स्वरूप में प्रिन्ट से लेकर ईलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने अधिकांश ने अपने आप को सरकार और प्रशासन के पीआरओ में तब्दील कर लिया है। आप अपने आसपास के किसी भी अखबार को देख लिजिए, हर कोई इसी तरह की खबरों से भरे होते है कि फलां मंत्री ने यहां का दौरा किया, फलां अधिकारी ने वहां जनसुनवाई की। अखबार भी आजकल केवल सूचना देने भर के काम के रह गए है।
ठीक है, क्षेत्र में क्या हुआ लोगो को इसकी जानकारी होनी ही चाहिए, मगर आप का दायित्व उससे कहीं ज्यादा बढ कर है। आजकल खोजी पत्रकारिता को कहीं खो सी गई लगती है। इस क्षेत्र का जो आखिरी नाम मुझे ध्यान पडता है वो संस्था के रूप में तहलका का है। उसके बाद मुझे व्यक्तिगत रूप से कोई भी स्तरीय खोजी पत्रकारिता का पहरूआ नहीं नजर आया। बाकी ये जो सारे चैनल्स ने अपने अपने दफ्तरों में खोजी पत्रकारिता के नाम पर एसआईटी खोल रखे है। इनके काम करने का स्तर ये है कि ये लोग अपने किसी जानकार अधिकारी के ऑफ द रिकॉर्ड बयान को स्पाई कैमरे से रिकॉर्ड करके टीवी पर दिखा कर उसे स्टिंग का नाम दे देते है।
वहीं अधिकतर बडे चैनल्स के स्थानीय चैनल किस तरह क्षेत्रीय सरकारों के पीआरओ बन कर उन्हे अपने पैकेज बेचते नजर आते है। अभी कुछ समय पहले बिहार-झारखण्ड सरकार और फिर उत्तराखण्ड सरकार द्वारा इस तरह के सौदे करने की बात भी सामने आई थी। ऐसे में ये चैनल्स अपनी हितेषी सरकारों के खिलाफ मुंह खोलेगे ये सोचना भी बेमानी है। जब तक इन मीडिया समूहो के मालिकान सरकारों से सांठगांठ बैठाकर राज्यसभा में जाने से लेकर मुफ्त की जमीनों और खानों के आवंटन के लिए लार टपकाते रहेंगे तब तक इनसे निष्पक्षता छोड, सच्चाई दिखाने की भी कोई उम्मीद मत किजिए।
मीडिया के संभवतया इस सर्वाधिक पतित दौर में सूचनाओं और सत्य के प्रसार की जिम्मेदारी अब सोशन मीडिया के अल्पव्यस्क कांधो पर आ गई है। हांलांकि यहां भी प्रोपरगैण्डा करने वालों की कोई कमी नहीं है, मगर फिर भी यहां किसी भी दावे की सत्यता पलक झपकते ही सामने आ जाती है। सुब्रम्यणम स्वामी द्वारा पोस्ट की गई फर्जी फोटो पोस्ट का मामला हो या सरकारों के झूठे आंकडों की प्रस्तुति, यहां मौजूद खिलाडे सैकण्डों में सारी हकीकत सबूत सहित आपके सामने रख देते है।
मेरा खयाल है कि आजादी के दौर में लोगो को जाग्रत करने की जो जिम्मेदारी उस समय के अखबारों ने उठायी थी, इस दौर में वहीं जिम्मेदारी सोशल मीडिया की है।
तो साहेबान, अब परंपरागत मीडिया के स्थान पर सोशल मीडिया को लोकतंत्र का चौथा खंबा कहिए।
मै अकसर लोगो की आदतों का बुरा नहीं मानता हूं, क्योंकि मुझे लगता है कि वो इसके इस कदर आदी हो चुके है कि उन्हे सही गलत का कोई आभास ही नहीं रहा है। वो तो बस आदतन अपनी लत के गुलाम होकर ये बेहुदगियां करते रहते है; मगर मुझे उस समय बडी कोफत होती है जब ये चन्द पढे लिखे और सो कॉल्ड हाई प्रोफाईल लोग भी अपने दिखावे के चक्कर में लोगो की भावनाओं का जमकर मखौल उडाते है।
मै अकसर देखता हंू, खासकर शोकसभाओं और अंतिम संस्कार जैसी जगहों पर जहां माहौल बडा गमगीन सा होता है। उन जगहों पर भी चन्द नमूने अपनी बेवकूफियों की नुमाईश से बाज नहीं आते है। आप असर इन जगहों को देख लिजीए, शुरूआत में तो सब बडे गमजदा से नजर आते है। हर कोई वैराग्य की बाते करता नजर आता है। जिस किसी को देखो वो जीवन की नश्वरता पर प्रवचन देता नजर आता है। मगर जैसे जैसे समय बीतता जाता है, उनकी कलई खुलती जाती है। शमशान घाट या शोकसभा की अंतिम पंक्तियों में बैठे लोग अक्सर जोर जोर से ठहाके लगाकर बात करते हुए या अपने मोबाईल पर उंची आवाज में बतियाते दिखाई पड ही जाते है।
कम से कम लोगो को इतना शउर तो होना चाहिए ना कि आप जहां आए है वहां की परिस्थितियों का सम्मान कर सके। इतना ही बस नहीं है, दरअसल हम में से अकसर लोगो को ये पता ही नहीं होता है कि हमें कब, कहां क्या करना चाहिए और क्या नहीं। यही असभ्यता हम मोबाईल फोन पर भी दर्शाते है। अव्वल तो जहां तक मेरा मानना है कि मोबाईल फोन आपकी निजी जानकारी है, ये केवल चुनिन्दा लोगो के पास ही होना चाहिए, मगर कुछ लोग पूरे दुनिया जहान को अपना नम्बर यूं बांटते फिरते है जैसे ये उन्हे द्वारा जीता गया कोई वीरता पुरस्कार है जिसके बारे में सबकों पता होना ही चाहिए।
अब आप खुद सोचे की पहले तो आप खुद सारी दुनियां को अपना नम्बर दे दे रहे है और फिर ये शिकायत भी करें कि लोग आपको वक्त बेवक्त फोन करके परेशान करते रहते है। खैर…. हममे से अधिकतर लोग मोबाईल रखते तो है मगर हमे उसके ईस्तेमाल का सलीका आज भी नहीं आया। भरे सिनेमाहाल या किसी जरूरी मीटिंग में जोर जोर से बजती अजीब अजीब सी रिंगटोन की बात छोड भी दे तो हमे कब किसी को फोन करना चाहिए कब नहीं हमने इसका जरा भी भान नहीं। जरा सोचिए कितना अजीब लगता होगा जब कोई बॉस अपनी महिला कार्मिक को रात के 12 बजे फोन करके कहे कि तुमने फलां फलां को मेल भेजा या नहीं।
यहीं समस्या सोशल मीडिया के साथ भी है, लोग अक्सर भूल जाते है कि भले ही ये आभासी दुनिया हो मगर यहां किरदार एकदक असली है; जाने किस रौ में लोग यहां एक दूसरे पर बेहद पर्सनल कमेन्ट कर जाते है। साथ ही कई बार लडाई मुददो से हटकर जाने कौन सी ही दिशा में चली जाती है। एक और बात… फेसबुक पर जब कोई साथी अपने किसी परिजन को खो देने की जानकारी देता है, या कोई और दुःखद बात शेयर करता है। तब भी ना जाने क्या सोचकर लोग उसे लाईक करने लग जाते है; अब सोचिए कि कोई इनसान कह रहा है कि ’’आज पिताजी चले गए, मन बडा दुखी है‘‘ और आप है कि उसकेे इस स्टेटस को लाईक कर दे रहे है, माने आप इस बात को पसन्द करते है कि उनके पिताजी चले गए और आप खुश है कि वो दुखी है… हद है यार
ऐसे में जब मौजूद ढेरों विकल्पों ने हमारे सामने एक नईदुनिया खोल दी है, और इस दुनिया में अलग अलग फितरत वाले लोग एकसाथ रहते है, ऐसे में हमें यहां रहने का वो सलीका सीखना ही होगा। जो पहले से ज्यादा सभ्य हो, और जो दूसरे की दुनिया में दखल देने वाला ना हो
अब जनता से किए वादे पूरे करने का इम्तिहान
Posted: दिसम्बर 26, 2013 in अवर्गीकृतटैग्स: AAP, Arvind Kejriwal, BJP, Kejriwal, Vasundhara
आज के कुछ साल बाद हम बडे फख्र के साथ बताएंगे कि हम गवाह है उस दौर के जब कैसे जनता ने सवा सौ साल पुरानी पार्टी को जड से उखाड फेंका था, वो भी एक दो नहीं पूरे चार राज्यों से, हम गवाह होगे कि कैसे एक आम सरकारी कारीन्दे ने भ्रष्ट सरकार को चुनौती दी और अपने समर्पण एवं जनता के सहयोग से खुद सरकार बन बैठा। हम गवाह होंगे कैसे अपनी परिभाषा खोते लोकतन्त्र को फिर से आम आदमी ने जनता का, जनता के लिए और जनता के द्वारा शासन बना दिया।
बेशक कुछ लोग केजरीवाल की इस अप्रत्याशित सफलता को पानी का बुलबुला बता रहे हो मगर फिर भी ये एक शुभ संकेत है कि देश की जनता का भरोसा अब भी लोकतन्त्र पर ही है, वो किसी मिस्र या सीरिया की तरह भावावेशी होकर सत्ता हाथ में लेने की पक्षधर नहीं बनी है। अरविन्द ने जनता के आक्रोश को बेहद रचनात्मक एवं सकारात्मक प्रयोग किया है, और इसके लिए उन्हे साधुवाद… वैसे साधुवाद तो भाजपा को भी बनता है जिन्होने भले राजस्थान में बीते पांच सालों में बेहतर विपक्ष की भूमिका नहीं निभाई हो, जो बेशक पिछले पांच सालों में राज्य की जनता को गहलोत के भरोसे छोड कर बाहर विचरण करने चली गई हो मगर उनके राष्ट्रीय नेतृत्व और जमकर चली मोदी लहर पर सवार होकर तीन राज्यों में सरकार बनाने का मौका हासिल किया है।
इस धमाकेदार शुरूआत के साथ ही राजस्थान और दिल्ली दोनो राज्यों की सरकारों के सामने एक बडा यक्ष प्रश्न उन वादों को पूरा करना है जो उन्होने अपने राज्य की जनता से किया है। पहले बात दिल्ली की.. वहां केजरीवाल ने जो वादे किए मसलन प्रतिदिन ७०० लीटर मुफ्त पानी, आधी दरो पर बिजली, १५ दिन में लोकपाल आदि इत्यादि। मुझे लगता है कि ये वादे पूरा करना किसी भी ईमानदार और समर्पित सरकार के लिए कोई बडा काम नहीं है, देखिए पहला किसी भी लोककल्याणकारी सरकार की ये पहली शर्त है कि वो अपनी जनता को पीने का पानी मुहैया करवाए, क्योंकि हर आदमी बिसलरी खरीदने में सक्षम नहीं हो कसता, दूसरा बिजली की दरे, तो हमें पहले ये जानना होगा कि दिल्ली की बिजली सप्लाई वर्तमान में रिलायन्स के हाथों में है और हम समझ सकते है कि कोई भी निजी कम्पनी अपने काम में कितनी ईमानदार हो सकती है। अभी कुछ दिन पहले उत्तरप्रदेश बिजली विभाग के अधिकारीयों ने बाकायदा मीडिया के सामने अपना प्रजेन्टेशन देकर बताया था कि कैसे ये निजी कम्पनियां झूठे आंकडो की मदद से अपना घाटा बढाती है और बिजली की दरों में वृद्धि करती जाती है, यदि यही वितरण सरकार अपने हाथों में ले तो बढे आराम से ४.५० रूपये प्रति यूनिट की दर से सप्लाई दी जा सकती है जो केजरीवाल के वादे के मुताबिक वर्तमान दर की लगभग आधी है। अब बात जनलोकपाल की, तो यूपीए सरकार अपनी ओर से ये विधेयक पास कर के राष्ट्रपति के पास पेश कर चुकी है, उनके द्वारा विधेयक पर हस्ताक्षर करने के बाद बने कानून के अनुसार यूं भी राज्यों को साल भर के भीतर अपने अपने राज्यों में लोकपाल बनाना ही है, तो यहां भी कोई बडी परेशानी केजरीवाल को नहीं दिखाई दे रही है।
मगर राजस्थान सरकार परेशानी में नजर आ रही है, जहां दिल्ली में केजरीवाल को अपने वादे पूरे कर जनती के दरबार में अपनी क्षमता सिद्ध करनी है वहीं वसुन्धरा के सामने जनती से किए वादे पूरे कर अपनी पार्टी को लोकसभा में अधिकतम सीटे जिताने का प्रेशर है। तो अब बात वसुन्धरा के वादों की… ज्यादा कुछ नहीं बस केवल दो तीन वादे जो मुझे असंभव तो नहीं मगर काफी कठिन लग रहे है। मसलन पहले पहल बेरोजगारों को पाच साल में १५ लाख रोजगार मुहैया करवाना, माने औसतन वर्ष में ३ लाख मुहैया करवाना। जबकि कार्मिक विभाग की माने तो राज्य में अधिकतम डेढ से दो लाख लोगो को ही रोजगार मुहैया करवा जा सकता है। अब अगर इसमें रिफाईनरी और मैट्रो से उत्पन्न होने वाले रोजगारों को भी शामिल कर दे तो भी आंकडा ३ लाख से उपर नहीं जा पायेगा जो वादे के मुताबिक केवल साल भर का कोटा होगा। और अबर वसुन्धरा अपना ये वादा पूरा नहीं कर पाई तो बेरोजगार युवाओं के साथ किया ये जुबानी छल उन्हे काफी भारी पडेगा। इसी प्रकार उन्होने टेट खतम करने का वादा भी इन्ही युवाओं के किया था, जो संभवतया किसी भी राज्य के लिए आसान काम नहीं है। इसके अलावा २४ घन्टे बिजली, किसानों को रियायते जाने क्या क्या.. फरहिस्त काफी लम्बी है।
अब देखना ये है कि ये दोनो ही रण बांकुरे क्या गजब ढाते है, दुआ है कि दोनो ही जनता से किए अपने वादे पूरे कर पाए…… आमीन!!!
चित्त हो भयमुक्त जिससे और ऊंचा रह सके सिर…
Posted: दिसम्बर 23, 2013 in अवर्गीकृतटैग्स: bordia, education, j.krishnmurty
एक बार जब ख्यात शिक्षाविद् और विचारक जे. कृष्णमूर्ति से पूछा गया कि शिक्षा क्या है? तो उन्होने जवाब दिया कि शिक्षा वो है जो मनुष्य को प्रज्ञावान बनाए। लगभग यही बात देश की शिक्षा नीति को एक नई दिशा देने वाले शिक्षाविद् पदमभूषण अनिल बोर्दिया भी कहा करते थे, उनका कहना था कि शिक्षा वो है जिससे चित्त हो भयमुक्त जिससे और ऊंचा रह सके सिर… दरअसल ये पंक्तियां गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा लिखी कविता के हिन्दी अनुवाद से ली गई है, जो हमारे जीवन में शिक्षा के सही मायनों और संदर्भो को व्यक्त करती है।
अब सवाल ये है कि इंसान को भयमुक्त अथवा प्रज्ञावान होने से तात्पर्य क्या है और हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली उसमें कहां तक कारगर है। प्रज्ञावान होने का तातप्र्य है कि हमारी आत्मा अच्छे-बुरे, जीत-हार के व्यर्थ डर से मुक्त हो पाए, जो हर परिस्थिति में सिर ऊठा कर रह सके। जो उसे इंसान होने का मतलब सीखा पाए… जरा सोचिए कि अगर कोई बच्चा केवल गिरने के डर से अपना पांव ना उठाए तो क्या वो कभी चलना सीख पाएगा। हमारे इसी डर ने हमसे कुछ नया सीख पाने का सामथ्र्य छीन लिया है। इसका पूरा पूरा दोष हमारी मौजूदा शिक्षा प्रणाली को है। मैकाले द्वारा प्रतिपादित इस पद्धति में कुछ नया करने या नवाचारों के प्रति कोई आग्रह है ही नहीं, इस प्रणाली का पूरा जोर केवल हुकम की तामील करने वाले कर्मचारी तैयार करना है जो केवल बताये गए काम को एक तयशुदा करने भर के लिए सक्षम हो।
अब जब किसी शिक्षा पद्धति का लक्ष्य ही अनुसरण करने वाले व्यक्ति तैयार करना होगा तो वो कैसे भयमुक्त इंसान तैयार कर पाएगी। आप किसी भी स्तर के कक्षाकक्ष को देख लीजिए, शिक्षकोंं द्वारा प्रश्र पूछने वाले छात्रों को किस तरह हतोत्साहित किया जाता है। कक्षा में किसी छात्र के नम्बर केवल इस आधार पर काट लिए जाते है क्योंकि उसने शिक्षक के बताए तरीके ये सवाल हल नहीं किया। जो शिक्षा बच्चे के मूल्यांकन में कोई नवाचार सहन नहीं कर सकती वो उसे जीवन में नवाचार करने के लिए तैयार कर पाएगी, इस तथ्य पर भरोसा करना जरा मुश्किल ही है।
हम हमारी शिक्षा को देखे, वो जो आपने और हमने पाई है, उसका अपने रोजमर्रा के जीवन में कितनी काम का पाते है। माफ किजिएगा पर मुझे कभी जरूरत नहीं पडा की जीवन में एक्स=मान लो का प्रयोग कर पाया हूं, या अंग्रेजी में जबरन रटाए गए लॉयन एण्ड माउस की कहानी मुझे कहीं सुनानी पडी हो। ये केवल चन्द नमूने है हमारी शिक्षा का जीवन में प्रयोग बताने के लिए।
सरकार ने शिक्षा के अधिकार कानून को संविधान के बेहतर जीवन जीने की जरूरत वाले अनुच्छेद में जोडा गया है, ये बताते हुए कि शिक्षा किसी इंसान के सम्मानपूर्वक जीवन जीने की आश्वयक शर्त है, परन्तु ये शर्त कहां तक इंसान के जीवन जीने के काम आती है, ये बता पाना किसी सरकार के बस का रोग नहीं।
हम हमारे बच्चों को जबरन ये कहते हुए स्कूलों की ओर धकेलते है कि पढ-लिख लो कुछ बन जाओगे, मगर जब ये ही बच्चे अपने जीवन के बेशकीमती साल इन स्कूलों की दिवारों से सर पटकने के बाद खुद को बेरोगजगारों की भीड में खडा पाते है तब हमारे पास कोई जबाव नहीं होता देने के लिए कि इनकी पढाई क्यों इनके कोई काम नहीं आई। हमने कभी जानने की कोशिश ही नहीं की आखिर क्या वजह है कि अपना सबकुछ दांव पर लगाकर डिग्रीयां हासिल करने वाले इन युवाओं के जीवन में ऐसा कौनसा अंधेरा छा गया है कि चार महिने ढंग का प्लेसमेन्ट ना मिले तो वो मौत को गले लगा लेता है, या आठवी में पास ना होने पर कोई बच्ची आत्महत्या कर लेती है।
जीवन की चुनौतियों से लडने की ताकत इन्हे कौनसी शिक्षा, कौनसी किताब देगी….